Radha Yadav: कौन है राधा यादव जिन्होंने भारतीय महिला टीम में अपनी अलग पहचान बनाई है ? झुग्‍गी-झोपड़ी में बीता बचपन, क्रिकेट खेलने के लिए खूब बेले पापड़, WPL तक का सफर बेहद कठिन रहा

Radha Yadav: भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ऑलराउंडर राधा यादव को दिल्‍ली कैपिटल्‍स ने उनकी बेस प्राइस 40 लाख रुपये में खरीदा। महिला प्रीमियर लीग में खिलाड़‍ियों की नीलामी सोमवार को मुंबई के जियो वर्ल्‍ड कंवेंशन सेंटर पर संपन्‍न हुई। कुल 87 खिलाड़ी बिके, जिसमें से राधा को दिल्‍ली अपने साथ जोड़ने में सफल रही।

राधा यादव बेशक सफलता की सीढ़‍ियां चढ़ती जा रही हैं, लेकिन उनके क्रिकेटर बनने का सफर बेहद मुश्किलों से भरा रहा है। राधा यादव बेहद साधारण परिवार से ताल्‍लुक रखती है। उनका बचपन झुग्‍गी-झोपड़ी के बीच बीता। राधा उत्‍तर प्रदेश के जौनपुर से संबंध रखती हैं। राधा का बचपन से ही क्रिकेट के प्रति लगाव रहा, लेकिन इसके लिए उन्‍हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

6 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेलना शुरू किया

राधा मूलत: उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के अजोशी गांव की रहने वालीं हैं। प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। इंटर की परीक्षा केएन इंटर कॉलेज बांकी से उत्तीर्ण की। पिता प्रकाश चंद्र यादव मुंबई में डेयरी उद्योग से जुड़े हैं तो राधा भी पिता के पास जाकर क्रिकेट की कोचिंग लेने लगीं और 2018 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया। शुरुआत में वह मुंबई टीम का हिस्सा थी। वर्तमान में वह गुजरात से खेलती है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद न तो पिता ने हार माना और न ही बेटी ने हौसला छोड़ा।

राधा यादव ने मात्र 6 साल की उम्र में क्रिकेट खेलना शुरू किया। उन्‍होंने क्रिकेट की ट्रेनिंग मुंबई में ली, जहां उनके पिता डेयरी के काम से जुड़े हुए थे और एक दुकान चलाते हैं। राधा का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत नहीं था। पिता के डेयरी के काम और दुकान से घर व क्रिकेट का खर्च निकालना बेहद मुश्किल था।

पिता ने दिया पूरा साथ

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राधा यादव का परिवार – फोटो : सोशल मीडिया

राधा के लिए क्रिकेट खेलना आसान नहीं था। उन्‍हें क्रिकेटर बनने के लिए समाज के तानों से भी जूझना पड़ा। राधा को क्रिकेटर बनने में उनके पिता ने मदद की। मूल सुविधाओं के अभाव के बावजूद पिता ने राधा के क्रिकेटर बनने के सपने में कोई कमी नहीं छोड़ी। राधा ने भी कड़ी मेहनत की और परिस्थितियों के सामने कभी घुटने नहीं टेके।

भारत के लिए किया डेब्‍यू

राधा यादव की कहानी युवाओं के लिए प्रेरणादायी है कि आप मुश्किलों का डटकर मुकाबला करें और अपनी मंजिल पर ध्‍यान रखें। आपको सफलता जरूर मिलेगी। राधा को भी कड़ी मेहनत का ईनाम मिला और 2018 में महज 18 साल की उम्र में बाएं हाथ की स्पिनर ने डेब्‍यू किया। राधा ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्‍होंने भारत के लिए कई मैच विनिंग प्रदर्शन किए और टीम में अपनी जगह पक्‍की की। इस समय राधा भारतीय टीम के साथ टी20 वर्ल्‍ड कप के लिए दक्षिण अफ्रीका में मौजूद हैं।

राधा यादव का करियर

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राधा यादव – फोटो : सोशल मीडिया

22 साल की राधा यादव ने भारतीय टीम के लिए अब तक केवल 1 वनडे और 64 टी20 इंटरनेशनल मैच खेले हैं। बाएं हाथ की स्पिनर ने टी20 इंटरनेशनल करियर में अब तक 67 विकेट लिए हैं। राधा ने बतौर गेंदबाज और बेहतरीन फील्‍डर के रूप में अपनी पहचान बनाई है। राधा ने अंतरराष्‍ट्रीय स्‍तर पर अपना जलवा बिखेरा है और डब्‍ल्‍यूपीएल में अपनी अलग पहचान बनाने के लिए तैयार हैं।

राधा ने जब पहली बार टीम इंडिया में जगह बनाई थी तो तब उनकी उम्र महज 17 साल थी। राधा के लिए यह सफर इतना आसान नहीं रहा। मुंबई के कोलिवरी क्षेत्र की बस्ती में 220 फीट की झुग्गी से टीम इंडिया तक की छलांग में राधा के संघर्ष की कहानी छिपी है। उसी मेहनत के बलबूते चोटिल राजेश्वरी गायकवाड़ की जगह उन्हें दक्षिण अफ्रीका दौरा पर चुना गया था।

मोहल्ले के लड़कों के साथ थामा था बल्ला

महज छह वर्ष की उम्र में ही राधा ने क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया था। पहले वह मोहल्ले के ही बच्चों के साथ खेलती थी। गली में स्टंप लगाकर लड़कों के साथ एकमात्र लड़की को खेलते देख आसपास के लोग परिवार पर तंज कसते थे। पिता ओमप्रकाश बताते हैं कि उन्हें अक्सर यह सुनने को मिलता था कि बेटी को इतनी छूट ठीक नहीं। लड़के कुछ बोल दें या मारपीट कर दें तो दिक्कत हो जाएगी।

मगर उन्होंने कभी भी इसकी परवाह नहीं की। बेटी को खुलकर अपनी मर्जी से खेलने की हमेशा छूट दी। चार भाई-बहनों में सबसे छोटी राधा के पिता छोटी सी दुकान चलाते हैं। छोटी सी दुकान से मुंबई जैसे महानगर में घर का खर्च निकाल पाना बेहद मुश्किल होता है। पढ़ाई-दवाई का खर्चा भी बमुश्किल निकल पाता है। ऊपर से बार-बार म्यूनिसिपल कार्पोरेशन की ओर से अतिक्रमण के नाम पर दुकानें हटाने की आशंका बनी रहती थी।

ऐसी विपरीत परिस्थितियों में राधा के पास किट तो दूर बैट खरीदने के पैसे नहीं थे। तब वह लकड़ी को बैट बनाकर अभ्यास करती थी। घर से तीन किमी दूर राजेंद्रनगर में मौजूद स्टेडियम तक पिता साइकिल से उसे छोड़ने जाते और फिर दूसरी ओर से राधा टेम्पो तो कभी पैदल ही घर आती थी।

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